वजूद

 हम अनजान तो नहीं थे तेरे इरादों से, पर  इश्क़ के हाथों मजबूर थे !!

क़त्ल भी माफ़ी था तेरा, हम तुझमे इतने मशगूल थे !!

इबादत भी की तो सिर्फ नाम तेरा था, मन्नतों में भी बस तेरी ही ख्वाहिश थी !!

हो के कुर्बत तेरे लबों से भी, वो हम ही थे जो सबसे दूर थे !!

इल्तजा भी न की हमने ग़मों को छुपाने की,

क्यूंकि तुम्ही मेरे मुजरिम भी थे, और तुम्ही मेरा वजूद थे !!

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