वीरान सफर......
आशा की किरण फिर मन में भर,
जब वो तय करती वीरान सफर......
निश्छल, निर्भय, निर्मल, कोमल,
कुमकुम, कर्मठ, खुशबू, शीतल....
अर्पण कर अपना हर एक पल,
जब वो निर्णय करती हर छड़....
संघर्ष हो या आसान हो सफर,
अब पुष्प मिले या मिले कंकड़....
जब तय है की अब रुकना ही नहीं
जब तय है की अब झुकना ही नहीं....
फिर लाख तूफां या घटा छाए,
जो रत घनेरी तड़पाए.......
उम्मीदों की लौ बुझी नहीं,
गर खून बहे भी तो बह जाए.....
इंसाफ बड़ा या ईमान बड़ा,
जब ऐसी कोई दुविधा आए...
ईमान न झुकने देना तुम,
फिर जाती है तो ये जान जाए.....
सिद्धांत हैं कुछ मेरे जीने के,
उनको हम कैसे ठुकराएं....
मंजिल तक पहुंचे बिना ही हम,
घर को वापस कैसे जाएं....
इंकार किया उन सौदों को,
जो जमीर बेच मंजिल पाएं....
बेपाक है चलना अब मुझको
गर वक़्त चाहे तो अड़ जाए.....
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