दरमियान

नजरें फेर ही ली हैं आपने तो वो भी मुनाशिब है,

 नफरत का ही सही ये रिश्ता ही काफी है!!

यूँ तो रिहा कर सकतीं हूँ खुद को हर एक इलज़ाम से, 

पर सोचती हूँ उन गुनाहों की कहाँ कोई माफ़ी है !!

जानती हूँ एक दिन आओगे फिर दिल  दुखाने को

कभी तो लौटोगे फिर बेरुखी दिखाने को......

 उस दिन ही पूछूँगी तुझसे.... क्या अपने दरमियान अब कुछ भी बाकि है ??

- Vishva

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